सिर्फ अक्रोश नहीं, 'सरिपोधा सनीवारम' के जरिए नानी और एसजे सूर्याह ने विशालतापूर्ण अदाकारी पेश की

घरसिर्फ अक्रोश नहीं, 'सरिपोधा सनीवारम' के जरिए नानी और एसजे सूर्याह ने विशालतापूर्ण अदाकारी पेश की

सिर्फ अक्रोश नहीं, 'सरिपोधा सनीवारम' के जरिए नानी और एसजे सूर्याह ने विशालतापूर्ण अदाकारी पेश की

सिर्फ अक्रोश नहीं, 'सरिपोधा सनीवारम' के जरिए नानी और एसजे सूर्याह ने विशालतापूर्ण अदाकारी पेश की

  • सुशीला गोस्वामी
  • 30 अगस्त 2024
  • 0

फिल्म 'सरिपोधा सनीवारम': गुस्सा और पारिवारिक संबंधों की जटिलता

फिल्म 'सरिपोधा सनीवारम' की रिलीज के बाद से ही इसे व्यापक रूप से सराहा जा रहा है। दिग्दर्शक विवेक आथरेया की यह फिल्म नानी, एसजे सूर्याह और प्रियंका मोहन की बेजोड़ अदाकारी और सटीक पटकथा की बदौलत दिलचस्प साबित हो रही है। फिल्म ने 29 अगस्त, 2024 को सिनेमा घरों में प्रवेश किया और तब से ही इसकी चर्चा हो रही है। यह विवेक आथरेया और नानी की दूसरी फिल्म है; इससे पहले इन दोनों ने 'अंते सुन्दरानिकी' जैसी रोचक प्रेम कहानियों पर काम किया था।

कहानी की जड़ें: गुस्से और परिवार के बीच का संघर्ष

फिल्म की कहानी सूर्या (नानी) नाम के पात्र के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने गुस्सैल स्वभाव के चलते संघर्ष कर रहा है। सूर्या एक प्यार करने वाला बड़ा भाई है, लेकिन उसका गुस्सा अक्सर उसके जीवन में समस्याएं पैदा करता है। उसकी माँ उसे सिखाती है कि वह अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर, सिर्फ हर सनीवार को ही अपने गुस्से का सामना करे। इस साहसिक निर्णय के पीछे एक गहरा पारिवारिक उद्देश्य छुपा हुआ है, जिसे फिल्म धीरे-धीरे उजागर करती है।

सूर्या की जिंदगी तब और पेचीदा हो जाती है जब उसकी मुलाकात सर्कल इंस्पेक्टर दयानंद (एसजे सूर्याह) से होती है। दयानंद एक कठोर और गुस्सैल पुलिसवाला है। इन दोनों का सामना एक घटना के दौरान होता है, जिससे फिल्म में एक तनावपूर्ण घमासान की शुरुआत होती है। इस संघर्ष में प्रियंका मोहन का किरदार (चारूलता) भी अहम भूमिका निभाता है, जो सूर्या और दयानंद के बीच के विवाद को और अधिक गहरा बना देता है।

फिल्म की तकनीकी बारीकियां और जिस्मानी अदाकारी

विवेक आथरेया की निर्देशन में बनाई गई इस फिल्म में उन्होंने बड़े ही सावधानीपूर्वक वर्ल्ड-बिल्डिंग की है। पटकथा में दिए गए पात्रों के कौशल, उनकी जिंदगी और समस्याओं को बहुत ही सहजता से पेश किया गया है। फिल्म में दृश्यरचना की बारीकियों को समझने में किसी भी आम दर्शक को कठिनाई नहीं होती और यह उसकी अनुभूति को बेहद रोमांचक बना देता है।

एसजे सूर्याह ने दयानंद के किरदार में अक्रोश और संवेदनशीलता का अद्भुत मेल प्रस्तुत किया है। उनका प्रदर्शन एक ऐसे पुलिसवाले का है, जो न सिर्फ अपने काम में बल्कि निजी जीवन में भी क्रोधित रहता है। वहीं नानी का प्रदर्शन सूर्या के रूप में बेहद दमदार है, जो अपनी मां की सलाह पर चलते हुए अपने गुस्से को नियंत्रित करने की कोशिश करता है। प्रियंका मोहन ने भी अपने सहायता रहे किरदार को बेहद सहजता और संजीदगी से पेश किया है।

संगीत और सिनेमाटोग्राफी

फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर जेक्स बजॉय द्वारा तैयार किया गया है, जो कहानी के नाटकीय पलों को और भी प्रभावशाली बनाता है। हालांकि गानों को उतना यादगार नहीं कहा जा सकता, लेकिन बैकग्राउंड म्यूजिक पर दिये गए काम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मुरली जी की सिनेमाटोग्राफी और कार्तिका श्रीनिवासन का एडिटिंग फिल्म को और भी ज्यादा उम्दा बनाते हैं।

फिल्म का समग्र अनुभव

संक्षेप में, 'सरिपोधा सनीवारम' एक पारिवारिक ड्रामा है, जो केवल रोमांचक कहानी का ही नहीं, बल्कि बुद्धिमानी से तैयार की गई पटकथा और संजीदा अदाकारी का भी सुंदर मेल है। यह फिल्म दर्शकों को कोई भारी-भरकम मनोरंजन नहीं देती, बल्कि उनके मन में गहरे पैठती है। नानी और एसजे सूर्याह के परिपक्व प्रदर्शन और विवेक आथरेया की कुशलता फिल्म को विशेष बनाते हैं। दर्शकों को यह फिल्म एक नया सिनेमाई अनुभव देने में सफल होती है।

लेखक के बारे में
सुशीला गोस्वामी

सुशीला गोस्वामी

लेखक

मैं एक न्यूज विशेषज्ञ हूँ और मैं दैनिक समाचार भारत के बारे में लिखना पसंद करती हूँ। मेरे लेखन में सत्यता और ताजगी को प्रमुखता मिलती है। जनता को महत्वपूर्ण जानकारी देने का मेरा प्रयास रहता है।

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