जब बात माँ फिल्म, ऐसी फ़िल्में हैं जो माँ के प्रेम, त्याग और संघर्ष को स्क्रीन पर जीवंत करती हैं की आती है, तो तुरंत भारतीय सिनेमा, देश का विशाल फ़िल्म उद्योग जिसमें विविध भाषाओं और शैलियों की भरमार है याद आ जाता है। ये फिल्में अक्सर परिवारिक ड्रामा, ऐसी कहानी शैली जो रिश्तों की जटिलताओं को दर्शाती है के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं और फीमेल सशक्तिकरण, समाज में महिलाओं की भूमिका को सशक्त बनाने की प्रक्रिया को भी बल देती हैं।
माँ फ़िल्में सिर्फ भावनात्मक पुल नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश भी देती हैं। माँ फ़िल्म दर्शकों में गहरा जुड़ाव पैदा करती है, क्योंकि हर दर्शक अपनी मातृभक्ति या अपने बचपन के अनुभवों को उन दृश्यों में देखता है। इस जुड़ाव की वजह से बॉक्स‑ऑफ़िस पर भी इनका प्रदर्शन अक्सर अच्छी होती है, चाहे वह क्लासिक ‘माँ’ हो या आधुनिक ‘रजनी कंगना’ जैसी कहानी।
एक माँ फ़िल्म में तीन मुख्य तत्व होते हैं: माँ का स्वरूप, परिवार की संघर्षपूर्ण यात्रा, और अंत में उम्मीद की किरण। भारतीय सिनेमा में यह फॉर्मेट कई दशकों से प्रयोग होता आया है। ‘आइए फिर से मिलें’ (1965) में माँ के बलिदान को दिखाया गया, जबकि ‘थप्पड़’ (2020) में सामाजिक मान्यताओं को चुनौती देते हुए माँ‑बेटी के रिश्ते को नये सिरे से पेश किया गया। इन उदाहरणों में आप देखेंगे कि परिवारिक ड्रामा माँ फ़िल्म को कथा‑संरचना देता है और फीमेल सशक्तिकरण इन कहानियों को सामाजिक प्रभाव में बदलता है।
समय के साथ माँ फ़िल्मों की शैली भी बदल गई है। पुरानी पीढ़ी में हिन्दू पौराणिक कथाओं के प्रभाव वाले किरदार प्रमुख थे, जबकि आज की पीढ़ी में कामकाजी माँ, सिंगल माँ, और LGBT प्रेक्षित माँ की कहानियाँ अधिक देखी जा रही हैं। यह बदलाव दर्शाता है कि भारतीय सिनेमा सामाजिक बदलाव को स्क्रीन पर प्रतिबिंबित करता है और नई दर्शक वर्ग को आकर्षित करता है।
कुशल निर्माताओं के लिए माँ फ़िल्म बनाना एक चुनौती भी है, क्योंकि भावनात्मक संतुलन बनाए रखना जरूरी है। एक सफल माँ फ़िल्म में हल्के‑फुल्के कॉमेडी के साथ गहरी दुविधाएँ भी होनी चाहिए, जिससे कहानी न तो भारी हो और न ही सतही। इस संतुलन को ‘संतुलित भावनात्मक लहर’ कहा जा सकता है, जो दर्शक को आराम और प्रेरणा दोनों देता है।
पढ़ते‑पढ़ते आप देखेंगे कि यह टैग पेज विभिन्न विषयों की खबरों को एकत्रित करता है, लेकिन माँ फ़िल्मों की दुनिया भी उतनी ही विविध है। नीचे आप कई खबरों, समीक्षाओं और विश्लेषणों में माँ फ़िल्मों के विभिन्न पहलुओं को खोजेंगे—क्लासिक रिव्यू से लेकर नई रिलीज़ तक। तो चलिए, इस दिल को छू लेने वाली सिनेमाई यात्रा को एक साथ शुरू करते हैं।
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