जब काज़ोल ने 27 जून 2025 को अपनी पहली हॉरर फिल्म माँभारत के पर्दे पर कदम रखा, तो बॉलीवुड के पूरी तरह से अलग‑झलक वाले साइड को देखना बेमिसाल था। इस फिल्म के पीछे विषाल फुरिया का निर्देशन और आजय देवन सहित Devgn Films और Jio Studios की प्रोडक्शन टीम थी। कहानी की पृष्ठभूमि चंद्रपुर के एक प्राचीन गाँव में बसी है, जहाँ माँ‑बेटी के रिश्ते को दानवीय शाप से लड़ना पड़ता है।
पृष्ठभूमि और निर्माण प्रक्रिया
‘माँ’ ने 2024 की हिट हॉरर ‘शैतान’ के ही यूनिवर्स में कदम रखा, तो यह कोई संयोग नहीं। फिल्म के निर्माताओं ने कहा कि 2024 की सफलता के बाद इस ब्रह्मांड को आगे बड़ा करना बेस्ट स्ट्रैटेजी थी। स्क्रीनप्ले सैविन क्वाड्रास ने लिखा, जबकि संदीप फ्रांसिस ने एडिटिंग संभाली। संगीत में हर्श उपाध्याय, रॉकी खन्ना और शिव मल्होत्रा का सहयोग था, जिससे गॉथिक माहौल में भारतीय लोकधुनों का मिश्रण बना।
फ़िल्म की शूटिंग दो मुख्य लोकेशन पर हुई – मुंबई के सेट और छत्तीसगढ़ के पहाड़ी गाँव, जहाँ चंद्रपुर की धुंधली साँसें स्क्रीन पर जीवंत हो उठीं। जब रोनित राय, इंद्रनील सेंगुप्ता और खेरिन शर्मा ने सहायक किरदार निभाए, तो उन्होंने काज़ोल की छाया को संतुलित किया, जिससे कहानी में थ्रिल और भावनात्मक गहराई दोनों दिखे।
कहानी का सार और प्रमुख थीम
काज़ोल ने ‘अंबिका’ का किरदार किया, जो अपने बच्ची को लेकर अपने पति के पूर्वजों के गाँव आती है जबाकि जमीन‑जायदाद के कागज़ों को सुलझाना होता है। लेकिन गाँव में उसे एक प्राचीन दानवीय शाप मिलता है, जो माँ‑बेटी के बंधन को तोड़ने की साजिश रचता है। अंबिका अपने भीतर दो रूप धारण करती है – एक माँ का प्यार और दूसरी काली माँ का असीम बलीदान। यह द्वंद्व कथा में शक्ति, त्याग और महिला सशक्तिकरण के मुद्दों को उठाता है।
जैसे‑जैसे कहानी आगे बढ़ती है, दर्शकों को दिखता है कि कैसे ‘काली’ रूप में अंबिका दानवियों को मारती है, जबकि वही रूप सामाजिक प्रतिबंधों और पारंपरिक मिथकों पर सवाल उठाता है। फिल्म का क्लाइमेक्स उस समय आता है जब अंबिका को अपने बचपन की गहरी यादों को फिर से जीकर दुष्ट शक्ति को ध्वस्त करना पड़ता है।

समीक्षाएँ, बॉक्स‑ऑफ़ और दर्शकों की प्रतिक्रिया
- CBFC ने U/A सर्टिफिकेट दिया, जिससे 16+ उम्र के साथ देखना संभव हुआ – यह हॉरर जेनर में दुर्लभ है।
- फिल्म ने 1500 स्क्रीन पर रिलीज़ कर कुल राजस्व ₹36.08 crore कमाया।
- क्रिटिक्स ने काज़ोल के अभिनय को सराहा, लेकिन लिखावट और पटकथा को ‘तड़केदार’ बताया।
- इंस्टाग्राम और ट्विटर पर दर्शकों का औसत रेटिंग 3.2/5 रहा, जहाँ कई ने “माँ के रूप में काज़ोल का इंटेंस प्रदर्शन” को हाइलाइट किया।
प्लेटफ़ॉर्म PVR INOX ने समय‑स्लॉट लेकर कम संतुष्टि जताई, जिससे काज़ोल की टीम ने बाद में कहा कि “स्ट्रैटेजिक शेड्यूलिंग न मिल पाना एक बड़ा चैलेंज था”। फिर भी, फिल्म ने विभिन्न भाषाओं (हिंदी, बांगला, तमिल, तेलुगु) में दर्शकों को जोड़े रखा, जिससे कई क्षेत्रीय बाजारों में मीडियम ग्रोथ देखी गई।
डिजिटल रिलीज़ और आगे की योजना
थिएटर रन के बाद, Netflix India ने 22 अगस्त 2025 को फ्रेंचाइज़ को स्ट्रीमिंग पर लाने का घोषणा किया। पहली हफ़्ते में 2.5 मिलियन व्यूज़ हासिल करने के बाद, प्लेटफ़ॉर्म ने कहा कि “‘माँ’ ने भारतीय हॉरर कंटेंट की नई संभावनाओं को उजागर किया”।
भविष्य में निर्माता ‘माँ’ के सीक्वल की बात कर रहे हैं, क्योंकि यूनिवर्स अभी भी कई अनकही कहानियों से भरा है। विषाल फुरिया ने इंटरव्यू में बताया, “अगर दर्शकों ने जुड़ाव देखा, तो हम अंबिका की बेटी की कहानी आगे बढ़ा सकते हैं”।

विशेषज्ञों की राय और उद्योग पर प्रभाव
फ़िल्म समीक्षक अनेरा जोशी ने लिखी, “काज़ोल की हॉरर में पहली कदम साहसी है, पर उद्योग को अब स्क्रिप्टिंग में भी उतना ही साहस चाहिए”। बॉक्स‑ऑफ़ विश्लेषक राजेश वर्मा ने कहा, “उच्च‑प्रोफ़ाइल एक्टर्स के हॉरर में प्रवेश से दर्शकों की उम्मीदें बढ़ती हैं, पर मार्केटिंग और स्क्रीन टाइम मैनेजमेंट को भी ध्यान देना जरूरी है।”
कुल मिलाकर, ‘माँ’ ने बॉलीवुड की जेंडर‑डायनामिक्स को चुनौती दी और दर्शकों को एक नई कथा‑आधारित हॉरर अनुभव दिया—जो भविष्य में बहु‑भाषी, बहु‑मीडिया विस्तार के लिए रास्ता बनाता है।
Frequently Asked Questions
‘माँ’ का हॉरर जेनर में पहला क्या खास है?
यह काज़ोल की पहली हॉरर फ़िल्म है और साथ ही फिल्म को U/A सर्टिफिकेट मिला, जो भारतीय हॉरर सिनेमा में बहुत कम होता है। इससे युवा दर्शक भी मातृ‑भौतिक शक्ति का अनुभव कर सकते हैं।
कौन‑कौन से मुख्य कलाकार इस प्रोजेक्ट में रहे?
मुख्य भूमिका में काज़ोल, रोनित राय, इंद्रनील सेंगुप्ता और खेरिन शर्मा हैं। साथ ही जितिन गुलाती, गोपाल सिंह, सूर्यासिखा दास, यानि भरद्वाज और रूपकट चक्रवर्ती सहायक भूमिकाओं में नजर आते हैं।
बॉक्स‑ऑफ़ में फिल्म ने कितना कमाया?
‘माँ’ ने अपने थिएटर रन के दौरान कुल ₹36.08 crore का राजस्व अर्जित किया, जो मध्यम स्तर का प्रदर्शन माना गया। यह आंकड़ा 1500 स्क्रीन की व्यापक रिलीज़ के मद्देनज़र संतोषजनक रहा।
फिल्म कब और किस प्लेटफ़ॉर्म पर स्ट्रीम होगी?
‘माँ’ ने 22 अगस्त 2025 को Netflix India पर स्ट्रीमिंग शुरू की। पहले हफ़्ते में 2.5 मिलियन व्यूज़ का लक्ष्य रखा गया था।
क्या इस फ़िल्म का कोई सीक्वल प्लान है?
निर्देशक विषाल फुरिया ने संकेत दिया है कि अगर दर्शकों की प्रतिक्रिया सकारात्मक रही तो अंबिका की बेटी की कहानी को आगे बढ़ाते हुए एक सीक्वल पर काम किया जा सकता है। आधिकारिक पुष्टि अभी बाकी है।
‘माँ’ ने बॉक्स‑ऑफ़ में 36 करोड़ की कमाई करके उद्यमी साहस का प्रतीक स्थापित किया है। काज़ोल की प्रदर्शन‑शैली को विश्लेषणात्मक लेंस से देखना रोचक होता है, क्योंकि वह हॉरर के साथ सामाजिक विमर्श को भी जोड़ती हैं। यह फिल्म भारतीय दर्शकों के लिए एक नई कथा‑आधारित थ्रिल का द्वार खोलती है।
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शब्दावली के स्तर को देखते हुए, फिल्म का कथात्मक परिप्रेक्ष्य अत्यंत जटिल पूर्णतया जटिल व्याख्याओं को सम्मिलित करता है। परन्तु, दर्शक‑संतुष्टि के संकेतकों को पारित करना कठिन प्रतीत होता है।
यदि दानवीय शाप को अस्तित्ववादी दुविधा के रूप में देखा जाए, तो यह फिल्म मानवीय आत्म‑साक्षात्कार का एक काल्पनिक प्रयोग है। स्पष्ट रूप से, यह व्याख्या सस्पेंस को बढ़ाती है।
परिवारिक मूल्यों की वाक्पटुता यहाँ पर गहरी सराहनीय है। फिर भी, पटकथा की दोहरावदार विधि में नवाचार की कमी महसूस होती है।
विषाल फुरिया द्वारा निर्देशित इस परियोजना का औपचारिक ढांचा अत्यधिक महत्वाकांक्षी प्रतीत होता है, परन्तु कभी‑कभी अतिवादी शैली दर्शकों को अवाक कर देती है।
फिल्म का संगीतजगत, लोकधुन और गॉथिक ध्वनि का मिश्रण, वास्तव में संवेदी अनुभव देता है। दर्शक इस मिश्रण को सराहेंगे, क्योंकि यह सामान्य हॉरर स्कोर से अलग है। चलिए, इस पहलू को आगे भी देखा जाए।
नवीनतम वाणिज्यिक मेट्रिक्स के अनुसार, ‘माँ’ ने व्यावसायिक सफलता के बहु‑आयामी पैमाने को छुआ है, परन्तु आलोचनात्मक रूप से, इसने कथा‑कौशल में गहराई खो दी है।
जबकि कई लोग बॉक्स‑ऑफ़ को ‘संतोषजनक’ कहते हैं, वास्तव में यह आंकड़ा बाजार‑उत्साह को केवल सतही रूप से दर्शाता है, क्योंकि कई छोटे‑पैमाना थिएटरों में कमी स्पष्ट है, जिससे समग्र प्रभाव कमजोर पड़ता है।
वास्तव में, फिल्म का प्री‑प्रोडक्शन चरण में लागत‑आधारित विश्लेषण दर्शाता है कि निवेश‑पर‑रिटर्न अनुपात में सुधार की संभावना थी। दूसरी ओर, मार्केटिंग‑टाइमिंग ने संभावित दर्शकों को आकर्षित करने में त्रुटि की। अंत में, यह सभी कारक मिलकर बॉक्स‑ऑफ़ प्रदर्शन को निर्धारित करते हैं।
चलो मान लेते हैं कि काज़ोल ने अपने अभिनय के साथ थोड़ा सा जादू भी दिखाया, तभी तो ये फिल्म इतनी चर्चा में आई। पर हाँ, थोड़ा और स्क्रिप्ट में ज़्यादा पिचकारी भी चाहिए थी।
मैं सोचता हूँ कि आगे की सीक्वल में कहानी और भी दिलचस्प हो सकती है। दर्शकों को फिर से आश्चर्यचकित करने के कई मौक़े हैं।
काज़ोल की पहली हॉरर फिल्म ‘माँ’ ने भारतीय सिनेमा में नई दिशा का संकेत दिया है। फिल्म की कहानी चंद्रपुर गाँव के प्राचीन मिथकों पर आधारित है, जो दर्शकों को स्थानीय संस्कृति से जोड़ता है। विषाल फुरिया ने निर्देशन में पारंपरिक डरावनी तत्वों को आधुनिक तकनीकी प्रभावों के साथ मिलाया, जिससे दृश्य अनुभव समृद्ध हुआ। संगीतकारों ने भारतीय लोक धुनों को गॉथिक स्कोर के साथ सिंक्रनाइज़ किया, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से गहराई में ले गया। मुख्य किरदार अंबिका का द्वैध स्वरूप – माँ का प्रेम और काली माँ का अंधकार – कथा में जटिल मानवीय संघर्ष को उजागर करता है। इस द्वंद्व ने सामाजिक प्रतिबंधों और महिला सशक्तिकरण के मुद्दों को सटीक रूप से प्रस्तुत किया। फिल्म की शूटिंग के दौरान छत्तीसगढ़ के पहाड़ी गाँव में स्थानीय लोगों की भागीदारी ने वास्तविकता को बढ़ाया। कलाकारों ने अपने किरदारों में गहरी भावनात्मक लेयर प्रदान करने के लिए स्थानीय रहन-सहन का अध्ययन किया। बॉक्स‑ऑफ़ में 1500 स्क्रीन पर रिलीज़ होकर कुल ₹36.08 करोड़ की कमाई हुई, जो मध्यम बजट फिल्मों के लिए उल्लेखनीय है। हालांकि, मार्केटिंग रणनीति को और सुदृढ़ कर शुरुआती हफ्तों में अधिक दर्शक लाए जा सकते थे। समीक्षकों ने काज़ोल के प्रदर्शन की प्रशंसा की, परंतु पटकथा की गति को कभी‑कभी खिंचा हुआ कहा। डिजिटल रिलीज़ के बाद, Netflix ने पहले हफ़्ते में 2.5 मिलियन व्यूज़ हासिल किए, जो दर्शाता है कि स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म पर भी फिल्म ने अपनी पकड़ बनायी रखी। अन्य निर्माता भी इस सफलता को देखते हुए हॉरर जेनर में अधिक प्रयोग करने की सोच रहे हैं। भविष्य में संभावित सीक्वल में अंबिका की बेटी की कहानी को विस्तार से दिखाया जा सकता है, जो यूनिवर्स को और भी रोमांचक बनाएगा। कुल मिलाकर, ‘माँ’ ने भारतीय हॉरर को नई ऊँचाइयों पर पहँचाया और दर्शकों को समृद्ध सांस्कृतिक अनुभव प्रदान किया।
वाकई, इस फिल्म ने दिल‑धड़कन को तेज़ कर दिया, लेकिन कहानी‑लाइन कुछ हिस्सों में बहुत ही बिखर‑बिखर के थी!!!
यदि हम फ़िल्म की सामाजिक संदेश को देखें, तो यह स्पष्ट है कि यह माँ‑बेटी के बंधन को आधुनिक चुनौतियों के संदर्भ में पुनःपरिभाषित करती है। वहीं, व्यावसायिक दृष्टिकोण से, इसने विविध भाषा‑बाजारों में अच्छा प्रदर्शन किया, जिससे कई क्षेत्रीय दर्शकों को आकर्षित किया गया। अंततः, हमें इस प्रयास को सराहना चाहिए और आगे के प्रोजेक्ट्स में इस तरह के बहु‑आयामी दृष्टिकोण की उम्मीद रखनी चाहिए।
संदेह नहीं कि ‘माँ’ ने बॉक्स‑ऑफ़ में निरपेक्ष आँकड़े प्रस्तुत किए, परन्तु यह विश्लेषणात्मक रूप से भी कहा जा सकता है कि सामग्री के स्तर में गहराई की कमी है। विशिष्ट रूप से, पटकथा के कई मोड़ अभिप्रेत प्रभाव को प्राप्त करने में विफल रहे, जिससे दर्शकों की निरंतर भागीदारी घट सकती है। इसके अतिरिक्त, मार्केटिंग‑कोऑर्डिनेशन में कुछ व्यावसायिक त्रुटियां देखी गयीं, जो फिल्म के संभावित राजस्व को प्रभावित कर सकती थीं। अतः, भविष्य में इसी प्रकार के प्रोजेक्ट में अधिक सुसंगत कथा‑प्रयोग और रणनीतिक रिलीज़ योजना आवश्यक होगी।
वाह! इस फिल्म ने हमें रोमांच की नई परिभाषा दी, और मैं आशा करता हूँ कि सीक्वल भी इस ही उत्साह के साथ आएगा।
फ़िल्म की विविध भाषा‑विज़ुअल्स को देख कर काफी प्रेरणा मिली
‘माँ’ के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि डर और प्रेम के बीच का संतुलन हमारे आंतरिक संघर्षों को प्रतिबिंबित करता है। इस दृष्टिकोण से, आगे के कहानी‑विचार में गहराई जोड़ना संभव है।
काज़ोल की इस प्रयास में दर्शकों का समर्थन दिखता है, जिससे भारतीय हॉरर को वैश्विक मंच पर पहचान मिल सकती है। इस तरह के प्रोजेक्ट्स को निरंतर प्रोत्साहन देना चाहिए।