खालिस्तानि समूहों की खबरें हर रोज़ सुर्खियों में रहती हैं। कभी वे सीमा पर हमला करते हैं, तो कभी शहर के अंदर भी हिंसा फैलाते दिखते हैं। ऐसे माहौल में आम लोग अक्सर डर और उलझन महसूस करते हैं। इस लेख में हम समझेंगे कि अभी क्या चल रहा है, सरकार ने कौन‑से कदम उठाए हैं और लोगों की राय क्या है।
पिछले महीने दो बड़े शहरों में एक साथ बम विस्फोट हुए थे। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बार लश्कर‑ए‑तैयबा और तहरीक‑ए‑इस्लाम दोनों ने मिलकर काम किया था। उनकी मांगें मुख्य रूप से शरिया कानून की पूरी लागू करवाना और विदेशी सैनिकों को हटाना है। लेकिन उनका तरीका अक्सर आम नागरिकों पर भी असर डालता है – स्कूल बंद हो जाते हैं, बाजार खाली रह जाता है और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में रुकावट आती है।
अफगान सरकार ने बताया कि इस साल ही खालिस्तानि समूहों के खिलाफ 150 से ज्यादा ऑपरेशन चलाए गए हैं। उनमें से लगभग आधे सफल रहे, यानी कई ठिकानों पर उनका नियंत्रण तोड़ दिया गया। फिर भी नई भर्ती लगातार होती रहती है, खासकर युवा वर्ग में जो बेरोज़गारी और शिक्षा की कमी से परेशान है।
सुरक्षा बलों ने हाल ही में एक बड़ी जाँच शुरू की है। इसका मकसद धन के स्रोत पता लगाना, सोशल मीडिया पर प्रचार को रोकना और स्थानीय नेताओं को सख्त चेतावनी देना है। सरकार अब इंटरनेट पर प्रतिबंध भी लगा रही है ताकि खालिस्तानियों का प्रोपीगैंडा जल्दी नहीं फैल सके। इस बीच कई NGOs ने शिक्षा और रोजगार के लिए विशेष योजनाएँ तैयार की हैं, जिससे युवा समूहों को वैकल्पिक रास्ता मिल सके।
जनता का मत दो भाग में बाँटा गया है। एक तरफ कुछ लोग सुरक्षा बलों की सराहना करते हैं, कहते हैं कि अब खतरनाक गैंग्स पर दबाव बढ़ रहा है। दूसरी ओर कई गांव और शहरी इलाकों में डर अभी भी बना हुआ है – घर से बाहर निकलना, बस में सवार होना या स्कूल भेजना सबको तनाव देता है। सोशल मीडिया पर अक्सर इस बात की चर्चा होती रहती है कि क्या सरकार का दायरा बहुत बड़ा हो गया है और नागरिक स्वतंत्रता को नुकसान पहुंच रहा है।
भविष्य के लिए कुछ संकेत मिल रहे हैं। यदि आर्थिक विकास जारी रहेगा और शिक्षा तक पहुँच बढ़ेगी, तो खालिस्तानि समूहों की भर्ती कम होगी। वहीं अगर सुरक्षा ऑपरेशन में अनावश्यक बल प्रयोग हुआ, तो स्थानीय समर्थन फिर से बढ़ सकता है। इस कारण विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सख़्त सुरक्षा के साथ-साथ सामाजिक पहलू भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।
अंत में यह कहा जा सकता है कि खालिस्तानि आतंकवाद सिर्फ एक सैन्य मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समस्या भी है। अगर सरकार, NGOs और आम लोग मिलकर समाधान निकालें तो इस खतरे को कम किया जा सकता है। अब समय है कार्रवाई का, केवल बातों से नहीं।
भारतीय गृह मंत्री अमित शाह पर कनाडा में खालिस्तानी आतंकियों को निशाना बनाने के आरोपों को भारतीय अधिकारियों ने बेबुनियाद बताया है। इन आरोपों से भारत-कनाडा के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ गया है। कनाडाई अधिकारी इन दावों का समर्थन करते हैं, जबकि भारतीय सरकार इसे सिरे से खारिज करती है, उसका कहना है कि अभी तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो अमित शाह के खालिस्तानी आतंकियों के निशाने बनाने के साथ संबंध को साबित करता हो। (आगे पढ़ें)