DRS विवाद – क्रिकेट में निर्णय समीक्षा की झंझट

क्रिकेट देखते‑देखते कभी सोचा कि रिव्यू क्यों जरूरी है? कई बार खिलाड़ी को आउट या नॉट‑आउट कहा जाता है और फिर तुरंत ही DRS (Decision Review System) का प्रयोग होता है। लेकिन इस सिस्टम के कारण अक्सर टीमें, एसीएस और फैन बहस में पड़ जाते हैं। यहाँ हम सरल भाषा में समझेंगे कि ये वाद‑विवाद क्यों पैदा होते हैं और क्या सुधार संभव है।

DRS क्या है?

DRS एक तकनीकी मदद है जो अंपियों को उनके फैसले की दोबारा जाँच करने देती है। इसमें बॉल ट्रैकिंग (स्पीड, डिप्रीशन), स्नीकर्स और हॉट‑स्पॉट जैसी टूल्स शामिल हैं। अगर खिलाड़ी या टीम सोचती है कि निर्णय गलत है, तो वे एक रिव्यू मांगते हैं। दो बार का मौका मिलता है – पहला बैटसमैन के लिए, दूसरा बॉलर के लिए।

विवाद के मुख्य कारण

सबसे बड़ी शिकायत तकनीक की भरोसेमंदी को लेकर आती है। कभी‑कभी स्पीड सेंसर या एंग्ल्स ट्रैकिंग गलत दिखाते हैं, जिससे आउट या नॉट‑आउट का फैसला उल्टा हो जाता है। दूसरा मुद्दा रिव्यू के दाम पर होता है – हर टीम केवल दो बार ही रिव्यू ले सकती है, इसलिए उन्हें सही समय चुनना मुश्किल लगता है। तीसरा कारण यह है कि छोटे फ़्रेम वाले देशों की टीमें अक्सर इस सिस्टम को समझने या उपयोग करने में पीछे रह जाती हैं, जिससे बड़े मैचों में असमानता पैदा होती है।

भारत जैसी बड़ी क्रिकेटिंग नेशन में भी DRS वाद‑विवाद कभी कम नहीं होते। विराट कोहली के आउट होने पर टीम ने रिव्यू लिया, लेकिन तकनीक ने बॉल को ‘नॉट‑आउट’ दिखाया और फिर से बहस शुरू हो गई। ऐसे मामलों में फैन सोशल मीडिया पर तुरंत ही टीके लगाते हैं – “क्या यह सही है?” या “अधिक जाँच करो!”. इस तरह की प्रतिक्रियाएं अक्सर मैच के माहौल को भी बदल देती हैं।

उपभोक्ता स्तर पर, कई दर्शक DRS को ‘ज्यादा टेक्निकल’ मानते हैं और खेल की सादगी में बाधा समझते हैं। उनका कहना है कि क्रिकेट का मज़ा अंपियों के निर्णयों में ही है, तकनीकी हस्तक्षेप से नहीं। वहीं कुछ लोग इसे आवश्यक देखते हैं क्योंकि बिना इस सिस्टम के कई बार स्पष्ट त्रुटियां हो सकती थीं जो मैच परिणाम को बदल देतीं।

अब बात करते हैं समाधान की। सबसे पहला कदम है टूल्स की कॅलिब्रेशन को सख्त बनाना, ताकि हर स्टेडियम में वही मानक लागू हों। दूसरा सुझाव यह है कि रिव्यू के मौके बढ़ाए जाएँ – खासकर बड़े टूर्नामेंट में जहाँ तनाव अधिक होता है। तीसरा विकल्प AI‑आधारित प्रीडिक्टिव मॉडल का प्रयोग है, जिससे अंपियों को तुरंत सही या गलत संकेत मिल सके, लेकिन फिर भी अंतिम फैसला मानव पर ही छोड़ें।

अंत में यह समझना जरूरी है कि DRS केवल एक मददगार उपकरण है, न कि खेल का मुख्य भाग। जब इसे ठीक से इस्तेमाल किया जाए तो यह न्याय को बढ़ावा देता है, और जब गलत लागू हो तो विवाद पैदा करता है। इसलिए दर्शकों, खिलाड़ियों और बोर्डों को मिलकर इस सिस्टम की सीमाओं को समझना चाहिए और सुधार के लिए मिलजुल कर काम करना चाहिए।

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मेलबर्न टेस्ट में पैट कमिंस की असफल अपील और DRS विवाद पर इरफान पठान की प्रतिक्रिया

के द्वारा प्रकाशित किया गया Ratna Muslimah पर 29 दिस॰ 2024

मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर खेली जा रही भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चौथे टेस्ट मैच के दौरान, पैट कमिंस का तीसरे अंपायर के फैसले को लेकर विवाद हुआ। पैट कमिंस ने मोहम्मद सिराज को गेंदबाजी की, जहां एक कैच का दावा किया गया, लेकिन तीसरे अंपायर ने आउट नहीं दिया। इस पर कमिंस ने रिव्यू की मांग की, लेकिन अंपायरों ने इसे संभव नहीं बताया, जिससे DRS प्रणाली की सीमाओं पर चर्चा शुरू हुई। (आगे पढ़ें)