पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह का 93 वर्ष की आयु में निधन
भारत के पूर्व विदेश मंत्री कंवर नटवर सिंह का शनिवार, 10 अगस्त 2024 को गुरुग्राम में 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। नटवर सिंह का जन्म 1931 में भरतपुर, राजस्थान में हुआ था। वे कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता थे और उन्होंने भारतीय कूटनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नटवर सिंह ने 2004 से 2005 तक यूपीए-1 सरकार के तहत विदेश मंत्री के रूप में सेवा की, जहाँ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे।
राजनीतिक और प्रशासनिक सेवा का लंबा सफर
नटवर सिंह ने अपने करियर की शुरुआत एक सिविल सेवक के रूप में की, और 1966 से 1971 तक पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यालय में कार्य किया। बाद में उन्होंने राजीव गांधी के कैबिनेट में मंत्री के रूप में भी सेवा दी। उनके राजनीतिक सफर में कई उच्च पद शामिल रहे और उन्होंने अपने अनुभव से भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी। नटवर सिंह को 1984 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
विवाद और सियासी सफर का अंत
नटवर सिंह का यूपीए-1 सरकार में कार्यकाल 2005 में उस समय अचानक समाप्त हो गया, जब उन्हें और उनके पुत्र को 'ऑयल-फॉर-फूड' स्कैंडल में शामिल बताया गया। इस विवाद ने उनके राजनीतिक करियर पर गहरा असर डाला और उन्हें कांग्रेस पार्टी से 2008 में इस्तीफा देना पड़ा।
साहित्यिक योगदान
नटवर सिंह ने कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं जिनमें 'द लेगसी ऑफ नेहरू: अ मेमोरियल ट्रिब्यूट' और 'माय चाइना डायरी 1956-88' शामिल हैं। उनकी आत्मकथा 'वन लाइफ इज़ नॉट इनफ' उनके विविध और समृद्ध जीवन को उजागर करती है। उनके साहित्यिक योगदान ने भी उन्हें एक विशेष पहचान दिलाई जो उनके राजनीतिक जीवन से अलग थी।
सर्वव्यापी शोक
कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने नटवर सिंह के निधन की पुष्टि की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर दुख व्यक्त किया और भारतीय कूटनीति में उनके महत्वपूर्ण योगदान की सराहना की। नटवर सिंह के निधन के बाद उन्हें विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक हस्तियों ने श्रद्धांजलि दी, जिससे उनके व्यापक प्रभाव और योगदान का अंदाजा लगाया जा सकता है।
निष्कर्ष
नटवर सिंह का निधन भारतीय कूटनीति और राजनीति का एक युग समाप्त होने जैसा है। उनकी जीवन यात्रा और विविध योगदान भारतीय राजनीतिक और साहित्यिक जगत में हमेशा याद किए जाएंगे। उनके जाने से एक ऐसा शून्य बन गया है जिसे भर पाना बेहद मुश्किल है। उनके परिवार और करीबियों को इस कठिन समय में हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं।
नटवर सिंह जी ने जिस तरह से भारत की विदेश नीति को रूप दिया वो आज भी याद किया जाता है उन्होंने चीन के साथ संवाद को इतना गहरा किया कि आज के युवा डिप्लोमेट्स को भी सीखने को मिलता है उनकी किताबें अभी भी आईएसएस के कॉर्सेज में पढ़ाई जाती हैं और उनके दृष्टिकोण ने बहुत सारे विदेश मंत्रियों को प्रेरित किया उनका अंदाज़ बहुत शांत था लेकिन बहुत ताकतवर और उनकी बातों में हमेशा एक गहराई थी जो आज के ट्वीट बेस्ड डिप्लोमेसी से बिल्कुल अलग थी उन्होंने अपने समय में अमेरिका के साथ संबंधों को भी नए आयाम दिए थे और उनकी नीति ने भारत को एक अलग पहचान दी थी जो आज भी उनके नाम से जुड़ी है उनके बारे में जब भी कोई बात होती है तो मैं हमेशा उनकी आत्मकथा को याद कर लेती हूँ जिसमें उन्होंने लिखा था कि राजनीति में जीवन नहीं बल्कि विचार जीतते हैं और उनके विचार अभी भी जीवित हैं उनके निधन के बाद भी उनके विचार हमारे लिए एक मार्गदर्शक हैं और उनकी याद न केवल राजनीति में बल्कि शिक्षा और साहित्य में भी जीवित रहेगी
असल में नटवर सिंह को तो बस एक अच्छा बोलने वाला आदमी माना जाता था लेकिन उनके बाद कोई ऐसा नहीं आया जिसने इतना गहरा विचार रखा हो
उन्होंने जो लिखा उसमें जितनी गहराई है उतनी आज के मंत्रियों के ट्वीट्स में नहीं है 😔 और फिर भी लोग उनकी बातों को भूल गए जैसे कोई बुजुर्ग की बात नहीं सुनता जब बच्चे टीवी देख रहे हों 🙃
क्या आपने कभी सोचा है कि ऑयल-फॉर-फूड स्कैंडल में उनका नाम लिया गया था क्योंकि वो बहुत अच्छे इंसान थे और उन्हें गिराने के लिए एक बड़ा बक्सा बनाया गया था... क्या ये सिर्फ एक संयोग है...? 🤔
मैंने उनकी आत्मकथा पढ़ी थी और वो बिल्कुल अलग लगी जैसे कोई दर्शन बता रहा हो ना कि एक राजनेता बात कर रहा हो उन्होंने लिखा था कि देश का भविष्य उन लोगों के हाथ में है जो खुद को अंधेरे में नहीं रखते बल्कि दूसरों को रोशनी देते हैं और ये बात आज भी बहुत रिलेटेबल है उनके बारे में बात करते समय लगता है जैसे कोई बुद्धि का एक असली तालाब सूख गया हो जिसमें अब दूसरे लोग भी तैरना भूल गए उनके बाद तो सब कुछ बहुत फ्लैट लगता है जैसे कोई डिजिटल फोटो जिसमें कोई डीप्थ न हो और हम अब भी उनकी बातों को याद कर रहे हैं इसका मतलब है कि वो अभी भी हमारे बीच हैं बस शरीर नहीं है बल्कि विचार हैं जो जीवित हैं
बस इतना कहना है कि उनके जैसे लोग अब नहीं बनते जिनके पास न तो ट्विटर था न फेसबुक था लेकिन उनकी बातों को सुनने के लिए दुनिया तैयार थी
उनके निधन के बाद आज के राजनेताओं का बयान बेहद बेसुध लगता है जो बिना किसी गहराई के विचारों को उच्चारित करते हैं और उनकी विरासत को अपने चुनावी लाभ के लिए उपयोग करते हैं जबकि नटवर सिंह का जीवन एक निरंतर विचार का उदाहरण था जिसमें अनुशासन और दर्शन का संगम था उनके लेखन में एक ऐसी शांति थी जो आज के अतिरिक्त भाषणों में अनुपलब्ध है उनकी आत्मकथा एक विद्वान की आत्मा को उजागर करती है जो अपने समय से आगे थे और आज जब हम एक निर्णय लेते हैं तो हमें उनके लिखे शब्दों को याद करना चाहिए क्योंकि वे न केवल एक राजनेता थे बल्कि एक विचारक थे जिन्होंने राजनीति को एक विज्ञान बनाया था
ये सब बकवास है उनके जैसे लोग तो आज भी हैं बस किसी को नहीं देखना चाहते बस एक राजनेता को बनाकर उसकी याद में रो रहे हो जबकि वो खुद तो बस एक बोलने वाला आदमी था
अरे भाई ये तो सब ठीक है लेकिन आज के दिन में जब आपके पास 10 लाख फॉलोअर्स हैं और आप बिना बोले भी चर्चा में आ जाते हैं तो नटवर सिंह जैसे लोग क्यों जरूरी हैं? जीवन तो बस एक लाइव स्ट्रीम है और उनका जीवन तो टीवी पर चलता था