पिछले साल से गुजरात में छोटे‑छोटे बच्चो की मृत्यु दर बढ़ रही है, और यह बात आम लोगों तक भी पहुंच चुकी है। कई बार सुनते हैं कि कोई छोटा बच्चा बीमारियों या कुपोषण से नहीं बच पाता, लेकिन कारणों को समझना अक्सर मुश्किल होता है। इस लेख में हम देखेंगे कि असली वजह क्या है, आँकड़े कैसे दिख रहे हैं और सरकार व समाज मिलकर क्या कदम उठा रहे हैं।
गुजरात स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार 2023‑24 में 0‑5 साल की उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 27 प्रति 1000 जन्म** थी**, जो राष्ट्रीय औसत से थोड़ी अधिक है। विशेषकर ग्रामीण इलाकों में यह संख्या 35 तक पहुंच जाती है। प्रमुख कारण हैं—न्यूमोनिया, डिहाइड्रेशन और गंभीर कुपोषण।
इन आँकड़ों को देख कर कई लोग पूछते हैं कि शहर के बड़े अस्पताल क्यों नहीं काम कर रहे? असल में, स्वास्थ्य सुविधाएँ अक्सर दूरदराज़ इलाकों तक पहुँच नहीं पातीं, और शुरुआती उपचार में देर हो जाती है। यही कारण बच्चों की जान बचाने का मौका खो देता है।
कुपोषण सबसे बड़ा दुश्मन है। ग्रामीण परिवारों में आय कम होने से पोषण वाला आहार नहीं मिल पाता, जिससे बच्चा कमजोर हो जाता है और संक्रमण का शिकार बनता है। साथ ही साफ़ पानी की कमी और अपर्याप्त स्वच्छता भी डिहाइड्रेशन और गैस्ट्रोएंटेराइटिस को बढ़ावा देती हैं।
बच्चों में तेज़ी से बुखार या सांस लेने में दिक्कत दिखने पर अक्सर घर में ही दवाइयाँ लगाई जाती हैं, डॉक्टर की सलाह नहीं ली जाती। यह भी मृत्यु के जोखिम को बढ़ाता है। कुछ क्षेत्रों में रात‑दिवस की टेम्परेचर उतार‑चढ़ाव से नयी बीमारियां उभरती हैं, जिससे छोटी उम्र के बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है।
इसके अलावा, कई जगहें अभी भी टिकाकरण कार्यक्रमों में गिरावट देख रही हैं। कुछ गांवों में टीके नहीं पहुँच पाते या लोग जानकारी न होने से वैक्सीन लेनें से कतराते हैं। इससे डिप्थीरिया और पोलीओ जैसी जानलेवा बीमारियों के केस बढ़ते हैं।
अब सवाल यह है—सरकार क्या कर रही है? गुजरात सरकार ने 2024 में ‘बाल स्वास्थ्य मिशन’ लॉन्च किया, जिसका मकसद हर गाँव में एक स्वास्थ्य कक्षा स्थापित करना और पोषण पूरक देना था। साथ ही मोबाइल हेल्थ यूनिट्स को बढ़ावा दिया गया ताकि दूरस्थ क्षेत्रों तक डॉक्टर की पहुंच हो सके।
पर ये पहलें केवल योजना स्तर पर ही रह जाती हैं जब तक कि स्थानीय निकाय, NGOs और स्वयंसेवी समूह सक्रिय न हों। कई NGOs ने स्कूलों में ‘हाथ धुलाई’ और ‘सही पोषण’ के बारे में जागरूकता अभियान चलाए हैं, जिससे माता‑पिता को सही जानकारी मिलती है।
आप भी मदद कर सकते हैं—बच्चे के लक्षण देख कर तुरंत नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाएँ, टीके की समय सारिणी का पालन करें और घर में साफ़ पानी व स्वच्छता बनाए रखें। अगर आप किसी गाँव या कस्बे में रहते हैं तो स्थानीय डॉक्टर से मिलकर पोषण योजना बनवा सकते हैं।
एक छोटी सी बात भी बड़ी फर्क डाल सकती है—जैसे बच्चों को रोज़ 30‑40 मिनट धूप में बैठाना, जिससे विटामिन D बढ़ता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। ऐसे छोटे‑छोटे कदमों से बच्चे की स्वास्थ्य स्थिति बेहतर हो सकती है।
अंत में, यह याद रखें कि बच्चों की मौतें सिर्फ आँकड़े नहीं हैं; हर एक केस का मतलब किसी परिवार के लिए बड़ा झटका है। इसलिए हमें मिलकर समस्या को पहचानना और तुरंत उपाय करना चाहिए। यदि आप गुजरात में रहते हैं या यहाँ से जुड़े हैं, तो अपने आसपास के लोगों को इस बारे में जागरूक करें—समस्या की समझ ही समाधान की दिशा तय करती है।
जुलाई 10 से अबतक गुजरात में छह बच्चों की संदिग्ध चांदीपुरा वायरस के कारण मौत हो गई है। कुल 12 मामले दर्ज किए गए हैं। यह वायरस ज्यादातर बुखार और तीव्र मस्तिष्कजनित शूल पैदा करता है और मच्छरों, टिकों और सैंड फ्लाई के जरिए फैलता है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ऋषिकेश पटेल ने पुष्टि की है कि मरीजों के नमूने पुणे के राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान भेजे गए हैं। (आगे पढ़ें)