गुजरात में संदिग्ध चांदीपुरा वायरस से छह बच्चों की मौत
गुजरात में पिछले कुछ समय से संदिग्ध चांदीपुरा वायरस के प्रकोप ने चिंताओं को बढ़ा दिया है। राज्य में जुलाई 10 से अब तक छह बच्चों की मृत्यु हो चुकी है। इस अवधि में कुल 12 मामले दर्ज किए गए हैं। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ऋषिकेश पटेल ने पुष्टि की है कि इन मरीजों के नमूने पुणे के राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) में पुष्टि के लिए भेजे गए हैं।
स्वास्थ्य विभाग सतर्क
संदिग्ध चांदीपुरा वायरस के कारण हो रहे इन मौत के मामलों ने स्वास्थ्य विभाग को सतर्क कर दिया है। स्वास्थ्य विभाग की टीमें रात-दिन इस स्थिति पर नजर रख रही हैं। एनआईवी से मिली जानकारी के अनुसार, यह वायरस फीवर और तीव्र मस्तिष्कजनित शूल पैदा करता है और इसके प्रकोप का मुख्य कारण मच्छर, टिक और सैंड फ्लाई है।
स्वास्थ्य विभाग ने जल्द से जल्द इस महामारी की पुष्टि के प्रयास किए हुए हैं। संदिग्ध मामलों के नमूने पुणे के राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान भेजे गए हैं। सबरकांठा जिले के हिमतनगर सिविल अस्पताल में चार बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग ने तेजी से कार्यवाही शुरू कर दी। अभी तक कुल छह बच्चों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। हिमतनगर अस्पताल में चार बच्चों की मृत्यु के बाद वहां इलाजरत चार अन्य बच्चों में भी समान लक्षण दिखाई दिए।
वायरस की पहचान और प्रकोप
अब तक दर्ज किए गए 12 मामलों में से चार सबरकांठा जिले से, तीन अरवल्ली से, एक महिसागर और एक खेड़ा से हैं। दो मरीज राजस्थान से और एक मरीज मध्य प्रदेश से आया था। सभी 12 मरीजों का इलाज गुजरात में ही किया गया।
स्वास्थ्य विभाग ने प्रभावित क्षेत्रों में व्यापक जांच और सर्वेक्षण किया है। 4,487 घरों के 18,646 लोगों की स्क्रीनिंग की गई है।गुजरात सरकार और स्वास्थ्य विभाग पूरे मामले को गंभीरता से ले रहे हैं और संभावित चांदीपुरा वायरस संक्रमण के सभी मामलों पर कड़ी नजर रख रहे हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि चांदीपुरा वायरस का यह हालिया प्रकोप अद्वितीय नहीं है। अतीत में भी इस वायरस ने बच्चों पर व्यापक प्रभाव डाला है, जो तीव्र बुखार और मस्तिष्क की सूजन का कारण बनता है। स्वास्थ्य विभाग गहरी पाइदान पर काम कर रहा है ताकि इस संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। वर्तमान में, संक्रमित इलाकों में आम लोगों को जागरूक किया जा रहा है और आवश्यक सावधानियों के पालन को अनिवार्य बनाया गया है।
स्वास्थ्य विभाग की तैयारी
संक्रमित क्षेत्रों में मच्छरों के प्रजनन को रोकने के लिए फॉगिंग और अन्य उपाय किए जा रहे हैं। दस्तों ने सुरक्षित पानी की उपलब्धता और स्वच्छता बनाए रखने के लिए उपाय भी किए हैं। लोगों को मच्छरों के काटने से बचने के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा के उपाय सुझाए गए हैं। बुखार और अन्य लक्षणों की जल्दासे पहचान और इलाज के लिए स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों पर विशेष टीमों को तैनात किया गया है।
स्वास्थ्य विभाग ने इन क्षेत्रों में विस्तृत शोध और डेटा संग्रह भी शुरू किया है ताकि वायरस के फैलाव और इसके नियंत्रण के लिए ठोस रणनीति बनाई जा सके। इसके अलावा, मरीजों के संपर्क में आए लोगों की भी जांच की जा रही है ताकि संक्रमण की रोकथाम सुनिश्चित की जा सके।
चांदीपुरा वायरस की सामान्य जानकारी
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि चांदीपुरा वायरस मुख्यतः बच्चों को प्रभावित करता है। इसे रोकने के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर सावधानी बरतनी जरूरी है। विशेषकर बच्चों को मच्छरों से बचाना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, वातावरण की स्वच्छता और मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए नियमित फॉगिंग आवश्यक है।
इस वायरस के लक्षणों में तेज बुखार, सिरदर्द, उल्टी, और विभिन्न स्नायु संबंधी विकार शामिल हैं। इस वायरस की पहचान और तेजी से इलाज करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा त्वरित कार्यवाही की जा रही है। राज्य के विभिन्न अस्पतालों में विशेष चिकित्सकों की टीम तैनात की गई है, जो मरीजों को लगातार निगरानी में रख रहे हैं और आवश्यक इलाज प्रदान कर रहे हैं।
वर्तमान में, चांदीपुरा वायरस का कोई विशिष्ट इलाज या टीका उपलब्ध नहीं है। इसलिए, संक्रमण को रोका जाना ही एकमात्र उपाय है। इस संदर्भ में, राज्य सरकार ने आम जनता से सुरक्षा और स्वच्छता के सभी उपायों का पालन करने की अपील की है।
सरकार की पहल
राज्य सरकार ने संक्रमित क्षेत्रों में जागरूकता अभियान भी शुरू किया है। स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर इस वायरस से संबंधित जानकारी आम जनता तक पहुंचाई जा रही है। इसके साथ ही, स्थानीय पंचायतों और नगर पालिकाओं को भी सक्रिय भूमिका निभाने के लिए निर्देशित किया गया है।
राज्य के चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों को भी इस वायरस के प्रकोप से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने और आवश्यक उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भी कई कदम उठाए हैं।
चांदीपुरा वायरस के इस प्रकोप से न केवल गुजरात बल्कि अन्य राज्यों को भी सतर्क रहना होगा। राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों के मामले भी इस वायरस के संक्रमण की गंभीरता को बताता है। इस संदर्भ में, सभी राज्यों को सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि इस प्रकोप को नियंत्रित किया जा सके।
आप सभी से अपील है कि मच्छरों से बचाव के सभी उपायों का पालन करें और किसी भी संदिग्ध लक्षण दिखाई देने पर तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क करें। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल सतर्कता और सावधानी ही इस वायरस के प्रकोप को रोक सकती है। वर्तमान में, स्वास्थ्य विभाग और सरकार की टीम इस दिशा में लगातार काम कर रही है।
ये वायरस तो पिछले 15 साल से चल रहा है, लेकिन अब तक किसी ने इसे नहीं सुना। जब बच्चे मरते हैं तब तो सब उठ खड़े हो जाते हैं, लेकिन जब गरीबों के बच्चे पेट के बीमारी से मरते हैं तो कोई नहीं बोलता। ये सब तो सिर्फ प्रेस के लिए है। अस्पतालों में तो बेड नहीं हैं, ऑक्सीजन नहीं है, दवाइयां नहीं हैं, और अब ये चांदीपुरा वायरस का नाम लेकर सब कुछ ढक दिया जा रहा है। जब तक बुनियादी स्वास्थ्य व्यवस्था मजबूत नहीं होगी, तब तक ये सब नाटक ही रहेगा। ये वायरस तो हर साल आता है, लेकिन अब तक किसी ने इसकी रिपोर्ट नहीं की, अब अचानक जब छह बच्चे मर गए तो सब भाग गए। असली समस्या तो ये है कि हमारे गांवों में स्वास्थ्य केंद्र बंद हैं, डॉक्टर नहीं हैं, और जब कोई बीमार होता है तो वो दूसरे शहर में जाता है, और तब तक देर हो चुकी होती है। ये वायरस तो बस एक बहाना है, असली बीमारी हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था है।
ये वायरस भारत की गरीबी का नतीजा है। अगर हमारे बच्चे मच्छरों से बचते तो ऐसा नहीं होता। सरकार ने फॉगिंग की, लेकिन लोग अभी भी पानी भरे बर्तन रखते हैं। ये बच्चों की मौत भारत की अनदेखी गरीबी की आवाज है।
मैं तो सबरकांठा का हूं, यहां तो लोग अब मच्छर के लिए नेट लगा रहे हैं, बच्चों को रात को बाहर नहीं जाने दे रहे। पिछले हफ्ते एक दोस्त का बेटा बुखार से बच गया, बस जल्दी डॉक्टर के पास ले गए। लेकिन ये सब बहुत देर से हुआ... कुछ लोग अभी भी सोचते हैं कि बुखार तो हो जाएगा, अपने आप ठीक हो जाएगा। ये वायरस नया नहीं, बस अब लोगों ने ध्यान देना शुरू कर दिया है। मैंने अपने बच्चे के लिए एक नेट खरीदा, और घर के आसपास के पानी के जमाव को हटा दिया। छोटी बातें बड़े असर देती हैं।
सरकार की तरफ से जो कार्रवाई हो रही है, वो बहुत अच्छी है। फॉगिंग, स्क्रीनिंग, टीमें तैनात करना - ये सब जरूरी है। लेकिन अब लोगों को भी जिम्मेदारी लेनी होगी। घर के आसपास पानी जमा नहीं होने देना चाहिए। बच्चों को रात में बाहर नहीं जाने देना चाहिए। बुखार आए तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए। ये सिर्फ सरकार का काम नहीं, हम सबका काम है। अगर हम सभी एक साथ काम करेंगे, तो ये वायरस रोका जा सकता है।
चांदीपुरा वायरस का यह प्रकोप एक वैज्ञानिक आपातकाल है, लेकिन इसके पीछे गहरा सामाजिक असंतुलन छिपा हुआ है। हमारी सामाजिक व्यवस्था इस तरह डिज़ाइन की गई है कि गरीबी और असमानता बच्चों के लिए एक जीवन-मृत्यु का खेल बन गई है। यह वायरस केवल एक लक्षण है - असली बीमारी हमारी शिक्षा प्रणाली है, जो लोगों को स्वास्थ्य जागरूकता नहीं सिखाती, हमारी राजनीति है, जो लोगों के लिए नहीं, बल्कि वोटों के लिए काम करती है, और हमारी आर्थिक नीति है, जो बुनियादी ढांचे को नजरअंदाज करती है। हम वायरस के खिलाफ लड़ रहे हैं, लेकिन वास्तविक दुश्मन हमारी अनदेखी है। एनआईवी के नमूने भेजना अच्छा है, लेकिन अगर हम अपने गांवों में बिजली, पानी और स्वच्छता की व्यवस्था नहीं करेंगे, तो ये वायरस नहीं, अगला वायरस आएगा। इसका नाम बदल जाएगा, लेकिन असली समस्या वही रहेगी। जब तक हम इस व्यवस्था को नहीं बदलेंगे, तब तक हम बस एक चक्र में फंसे रहेंगे।
ये सब तो बस बहाना है। पिछले साल भी ऐसा ही हुआ था, और तब भी सब भागे। अब फिर से ये नाटक शुरू हो गया। लेकिन सच तो ये है कि जिन बच्चों की मौत हुई, उनके माता-पिता ने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं कि बच्चे को मच्छर के काटने से कैसे बचाएं। बस बाहर खेलने देते रहे। और अब जब बच्चे मर गए, तो सब गुजरात सरकार को दोष दे रहे हैं। जिम्मेदारी तो पहले घर पर होनी चाहिए। बच्चे के लिए नेट लगाना इतना मुश्किल है? अगर तुम अपने बच्चे की जिंदगी के लिए नहीं लड़ सकते, तो सरकार को क्यों दोष दे रहे हो? ये सब तो बस एक आर्थिक बहाना है।