DUSU Election 2025: एबीवीपी का दबदबा—तीन पद जीते, एनएसयूआई को सिर्फ उपाध्यक्ष

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DUSU Election 2025: एबीवीपी का दबदबा—तीन पद जीते, एनएसयूआई को सिर्फ उपाध्यक्ष

DUSU Election 2025: एबीवीपी का दबदबा—तीन पद जीते, एनएसयूआई को सिर्फ उपाध्यक्ष

  • Ratna Muslimah
  • 20 सितंबर 2025
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DUSU Election 2025 में कहानी साफ है—दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति पर फिर एबीवीपी का रंग चढ़ा। चार में से तीन अहम पद उसके खाते में गए और एनएसयूआई को सिर्फ उपाध्यक्ष पद से ही संतोष करना पड़ा। पैमाना बड़ा था: 2.75 लाख से ज्यादा योग्य मतदाता, दो शिफ्ट में मतदान, और कड़ी निगरानी के बीच 18–20 दौर की गिनती। आंकड़े बताते हैं कि कैंपस का मूड पिछले साल की तुलना में बदल गया है।

परिणाम और आंकड़े: किसे कितने वोट मिले

राष्ट्रपति पद पर एबीवीपी के आर्यन मान ने भारी अंतर से जीतते हुए यह संदेश दिया कि संगठन की जमीन मजबूत है। उपाध्यक्ष पद पर एनएसयूआई ने वापसी की, लेकिन शेष दो पदों पर एबीवीपी ने बढ़त कायम रखी।

  • राष्ट्रपति: एबीवीपी के आर्यन मान—28,841 वोट; एनएसयूआई की जॉसलिन नंदिता चौधरी—12,645 वोट; स्वतंत्र (एनएसयूआई विद्रोही)—5,522 वोट; एआईएसए-एसएफआई की अंजलि—5,385 वोट।
  • उपाध्यक्ष: एनएसयूआई के राहुल झांसला—29,339 वोट; एबीवीपी के गोविंद तनवा—20,547 वोट; एआईएसए-एसएफआई के सोहन—4,163 वोट।
  • सचिव: एबीवीपी के कुनाल चौधरी—23,779 वोट; एनएसयूआई—16,177 वोट; एसएफआई-एआईएसए—9,535 वोट।
  • संयुक्त सचिव: एबीवीपी की दीपिका झा—21,825 वोट; एनएसयूआई—17,380 वोट; एसएफआई-एआईएसए—8,425 वोट।

मतदान गुरुवार को दो शिफ्ट में हुआ—दिन की कक्षाओं के लिए सुबह 8:30 से दोपहर 1 बजे तक और शाम की कक्षाओं के लिए 3 बजे से 7:30 बजे तक। ईवीएम से डाले गए मतों की गिनती शुक्रवार को यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स स्टेडियम के मल्टीपरपज हॉल में हुई, जहां सीसीटीवी निगरानी और सुरक्षा प्रोटोकॉल लगाए गए थे। कुल टर्नआउट लगभग 40% के आसपास रहा—जो डीयू के हालिया चुनावों के औसत के करीब है।

संख्याएं दिलचस्प संकेत देती हैं। आर्यन मान ने राष्ट्रपति पद पर 16,196 वोटों का बड़ा अंतर बनाया, जो सिर्फ जीत नहीं, जनाधार की मजबूती दिखाता है। वहीं उपाध्यक्ष पद पर राहुल झांसला की निर्णायक बढ़त बताती है कि एनएसयूआई का एक मजबूत कोर वोट बैंक बना हुआ है। सचिव और संयुक्त सचिव पदों पर एबीवीपी की जीत ने कुल मिलाकर छात्रसंघ की कमान उसके हाथ में सौंप दी।

कैंपस राजनीति: मुद्दे, संदेश और अगला एजेंडा

कैंपस राजनीति: मुद्दे, संदेश और अगला एजेंडा

इस बार के चुनाव में मुद्दे जमीन से जुड़े थे—यातायात, हॉस्टल, फीस, सुरक्षा, जेंडर सेंसिटाइजेशन और खेल। तीनों धड़ों ने चुनाव-पूर्व कैंपेन में अलग-अलग प्राथमिकताएं सामने रखीं।

  • एबीवीपी (आर्यन मान का प्लान): सब्सिडाइज्ड मेट्रो पास, कैंपस-वाइड फ्री वाई-फाई, दिव्यांग छात्रों के लिए एक्सेसिबिलिटी ऑडिट, और खेल ढांचे को मजबूत करना।
  • एनएसयूआई (जॉसलिन नंदिता चौधरी का एजेंडा): हॉस्टल की कमी दूर करना, कैंपस सुरक्षा बेहतर करना, और छात्राओं के लिए मेंस्ट्रुअल लीव लागू करना।
  • एआईएसए-एसएफआई (अंजलि और साथियों का फोकस): फीस वृद्धि वापस लेना, जेंडर सेंसिटाइजेशन, और शिकायत निवारण तंत्र की बहाली।

मतदान पैटर्न से लगता है कि छात्र सुविधाओं वाली ठोस मांगें—जैसे ट्रांसपोर्ट रियायत, वाई-फाई और खेल—कैंपस में गूंज बनीं। साथ ही उपाध्यक्ष पद पर एनएसयूआई को मिली सफलता बताती है कि हॉस्टल और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर उसकी अपील असरदार रही। लेफ्ट गठजोड़ (एआईएसए-एसएफआई) को विभिन्न कॉलेजों में सार्थक समर्थन जरूर मिला, पर यह व्यापक जीत में नहीं बदल सका।

2024 के मुकाबले यह उलटफेर है। पिछले साल सात साल के अंतराल के बाद एनएसयूआई ने राष्ट्रपति पद जीता था और संयुक्त सचिव भी उसके पास था, जबकि एबीवीपी के पास उपाध्यक्ष और सचिव थे। 2025 में पेंडुलम वापस एबीवीपी की तरफ झुका—राष्ट्रपति, सचिव और संयुक्त सचिव उसके पास, उपाध्यक्ष एनएसयूआई के पास। छात्र राजनीति में यह बदलाव बताता है कि कैंपस मूड एक साल में भी नए मुद्दों और संगठनात्मक ताकत के हिसाब से शिफ्ट हो सकता है।

नतीजों के बाद एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी ने आरोप लगाया कि उनकी लड़ाई सिर्फ एबीवीपी से नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन, दिल्ली सरकार, केंद्र, आरएसएस-बीजेपी और दिल्ली पुलिस की ‘कंबाइंड फोर्स’ से थी। यह एक राजनीतिक आरोप है; इसकी स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई। दूसरी ओर, मतगणना और सुरक्षा इंतजाम विश्वविद्यालय की ओर से पूर्व निर्धारित प्रोटोकॉल के तहत हुए।

अब सवाल है—अगला एजेंडा क्या होगा? सब्सिडाइज्ड मेट्रो पास जैसी योजना लागू करने के लिए एबीवीपी नेतृत्व को विश्वविद्यालय प्रशासन और दिल्ली मेट्रो/सरकार से तालमेल बैठाना होगा। वाई-फाई और स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार कैंपस-स्तर पर बजट और मेंटेनेंस की डिटेल प्लानिंग मांगेगा। दिव्यांग छात्रों के लिए एक्सेसिबिलिटी ऑडिट करने के बाद रैंप, लिफ्ट, रीडर-लैब और नोट्स-एसेस जैसे समाधान लागू करना असली परीक्षा होगी।

एनएसयूआई जिस मेंस्ट्रुअल लीव और हॉस्टल विस्तार की बात कर रही थी, वह बहस यहीं खत्म नहीं होगी। कई कॉलेजों में हॉस्टल क्षमता सीमित है और किराए/आवागमन का बोझ छात्रों के लिए बड़ा मुद्दा है। सुरक्षा के मोर्चे पर भी रोशनी, बस स्टॉप तक सेफ रूट, कैंपस पेट्रोलिंग, और शिकायत तंत्र को तेज करना व्यावहारिक कदम होंगे।

कैंपस राजनीति की यह जंग सिर्फ कॉलेज तक सीमित नहीं रहती। डीयू के छात्रसंघ से राष्ट्रीय राजनीति तक नेताओं की लंबी परंपरा रही है—कई पूर्व DUSU पदाधिकारी बाद में राष्ट्रीय सियासत में बड़े चेहरों के रूप में दिखे। यही वजह है कि DUSU के नतीजे अक्सर युवाओं के मूड और मुद्दों की दिशा का संकेत मान लिए जाते हैं।

टर्नआउट की बात करें तो करीब 40% भागीदारी डीयू के पैमाने पर औसत से थोड़ी ऊपर-नीचे रहती है—आमतौर पर 35–45% की रेंज में। डीयू का फैलाव बड़ा है, कॉलेज अलग-अलग इलाकों में हैं, दिन-शाम की शिफ्टें हैं, और बड़ी संख्या में कम्यूटर छात्र होते हैं—ये सारे कारक असर डालते हैं। ऐसे में जो संगठन जमीन पर लगातार काम करता है और अपने वोटरों को मतदान केंद्र तक लाता है, उसे बढ़त मिलती है।

इस चुनाव ने महिला प्रतिनिधित्व पर भी ध्यान खींचा। संयुक्त सचिव पद पर एबीवीपी की दीपिका झा की जीत बताती है कि छात्र राजनीति में महिलाओं का रोल बढ़ रहा है—अब चुनौती यह है कि सुरक्षा, स्वच्छता, मेंस्ट्रुअल हेल्थ और लैंगिक समानता से जुड़े वादे कागज से निकलकर जमीन पर दिखें।

लेफ्ट गठजोड़ के लिए यह चुनाव एक रियलिटी चेक भी है। जेंडर सेंसिटाइजेशन और फीस रोलबैक जैसे मुद्दों पर साफ और वैचारिक कैंपेन के बावजूद, वोट शेयर तीसरे पायदान पर सिमटा रहा। इसका मतलब है कि उन्हें या तो अपने नैरेटिव को और व्यापक बनाना होगा या कॉलेज-स्तर पर संगठनात्मक नेटवर्क बढ़ाना होगा—तभी वह त्रिकोणीय मुकाबले में निर्णायक असर डाल पाएंगे।

दूसरी तरफ, एबीवीपी के पास अब छात्रसंघ की मशीनरी है—पर असली कसौटी डिलीवरी की है। फंडिंग, प्रशासनिक अनुमतियां और इंटर-एजेंसी कोऑर्डिनेशन जैसे पेचीदे काम सामने होंगे। अगर शुरुआती 100 दिनों में कुछ दृश्यात्मक कदम—जैसे वाई-फाई हॉटस्पॉट्स का विस्तार, दिव्यांग-अनुकूल सुविधाओं की शुरुआत, या स्पोर्ट्स सुविधाओं की मरम्मत—दिखते हैं, तो कैंपस में उनके लिए नैरेटिव मजबूत होगा।

एनएसयूआई के लिए रास्ता दोतरफा है—उपाध्यक्ष पद का इस्तेमाल मुद्दों को टेबल पर रखने और निगरानी की भूमिका निभाने में होगा, साथ ही कॉलेज यूनिट्स में अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी। हॉस्टल और सुरक्षा जैसे ‘कोर’ मुद्दे वैसे भी रोजमर्रा की छात्र जिंदगी से सीधे जुड़े हैं—अगर इन पर छोटे-छोटे जीतों का रिकॉर्ड बनता है, तो अगले चक्र में राजनीतिक लाभ दिख सकता है।

कुल तस्वीर यह है कि 2025–26 के कार्यकाल में छात्रसंघ के सामने रोजमर्रा की सुविधाओं और संरचनात्मक सुधारों का मिश्रण है—ट्रांसपोर्ट रियायत, डिजिटल कनेक्टिविटी, सुलभ कैंपस, सुरक्षित रास्ते, और खेल/सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए ज्यादा स्पेस। डीयू जैसी विशाल यूनिवर्सिटी में यही बुनियादी चीजें छात्र अनुभव को बदलती हैं—और वही अगले चुनाव का मूड भी सेट करती हैं।

लेखक के बारे में
Ratna Muslimah

Ratna Muslimah

लेखक

मैं एक न्यूज विशेषज्ञ हूँ और मैं दैनिक समाचार भारत के बारे में लिखना पसंद करती हूँ। मेरे लेखन में सत्यता और ताजगी को प्रमुखता मिलती है। जनता को महत्वपूर्ण जानकारी देने का मेरा प्रयास रहता है।

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