भारत में कॉफी का इतिहास और इसकी बढ़ती लोकप्रियता
कॉफी, जिसे हम अपनी ऊर्जा बढ़ाने वाले पेय के रूप में जानते हैं, का इतिहास अत्यंत रोचक और पुराना है। यह पेय प्रारंभ में इथियोपिया में खोजा गया था, जहां एक चरवाहे ने देखा कि उसकी बकरियां लाल कॉफी चेरी खाने के बाद अत्यधिक सक्रिय हो गईं। इस चरवाहे का नाम काल्दी था, और उसके ये अवलोकन बाद में एक अद्भुत पेय के आविष्कार का कारण बने।
इथियोपिया से कॉफी अरब प्रायद्वीप तक पहुँची और वहाँ से इसे पूरी दुनिया में फैलने का अवसर मिला। अरब क्षेत्र में इसकी वैधता और व्यापकता के कारण ही इसे
मैंने अपने गांव में एक छोटी सी कॉफी शॉप देखी थी, जहां बुजुर्ग लोग दिनभर में सिर्फ एक कप कॉफी पीकर बातें करते रहते थे। वो कॉफी बिना चीनी के, बस गर्म और तेज़। अब तो ये सब फ्रेश ब्रू की बातें कर रहे हैं, पर वो पुराना स्वाद कहां गया? 😔
यह बात बिल्कुल सही है कि कॉफी का इतिहास इथियोपिया से शुरू हुआ, लेकिन इसका भारतीय संस्करण उससे कहीं अधिक जटिल है। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान दक्षिण भारत में कॉफी की खेती को विकसित किया गया, जो एक आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से गहरा निर्णय था। इसके बाद के सदियों में, यह केवल एक पेय नहीं, बल्कि एक सामाजिक संकेत बन गया - शहरी उच्च वर्ग के लिए आधुनिकता का प्रतीक, और ग्रामीण क्षेत्रों में एक आध्यात्मिक दिनचर्या। यह बहुत ही गहरी जड़ों वाली घटना है।
कॉफी पीना नहीं, बल्कि उसके साथ बैठना है जो असली है।
अरे भाई ये सब बातें तो बहुत अच्छी हैं पर क्या आप जानते हैं कि भारत में 70% कॉफी अभी भी रिटेलर्स द्वारा बेची जाती है और उसका 90% अनब्रू कॉफी है? 😱 अब तो कॉफी बनाने के लिए फिल्टर और ड्रिप भी नहीं, बस गर्म पानी डालकर चम्मच में मिलाकर पी लिया जाता है! ☕🔥 #कॉफीकासच्चाई
मैंने एक बार कोच्चि में एक छोटी सी दुकान पर कॉफी पी थी जिसमे दूध नहीं था बस चीनी और बहुत ज्यादा कॉफी पाउडर... और वो बिल्कुल जादू था 😍 अब तो लोग इसे इंस्टेंट कॉफी कह रहे हैं पर वो तो असली भारतीय कॉफी है!
सच कहूं तो कॉफी का ये रूपांतरण भारत की तरह के देश के लिए बहुत सही लगता है। हमने एक विदेशी पेय को अपनाया, लेकिन उसे अपने तरीके से बदल दिया। अब ये न तो अरब की कॉफी है, न ही इथियोपियाई - ये तो भारतीय है। यही तो असली अनुकूलन है। इस बात का गौरव हमें अपने अंदर रखना चाहिए।